Monday, February 3, 2025
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दिल्ली चुनाव 2025-अन्ना के भ्रष्टाचार मुक्ति आंदोलन से जहर खुरानी तक

Delhi Elections 2025-From Anna’s anti-corruption movement to Zahar Khurani

  • दिल्ली चुनाव 2025 – अन्ना के भ्रष्टाचार मुक्ति आंदोलन से शीशमहल राजमहल और जहर खुरानी तक, प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला

दिल्ली चुनाव 2025: राजनीति में चुनाव और चुनाव में मुद्दों पर मतदान की जनता जनार्दन से अपील राजनीतिक दल नेताओं द्वारा की जाती है। प्रारम्भिक आम चुनावों में रोटी ,कपड़ा और मकान से शुरू होकर विकास तक के मुद्दों ने तो मतदाताओं को काफी आकर्षित किया था। जो गत लोकसभा चुनाव में तू तू मै मै तक पहुंच गया था। ऐसे में दिल्ली विधानसभा चुनाव -2025 सम्पूर्ण भारतीय जनमानस के आंखों का पर्दा हटाने वाला है। दिल्ली में 11 जिलों के 07 सांसद एवं 70 विधायक होते हैं। आकार की दृष्टि से तो छोटा जरूर है ।

लेकिन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए जिन मुद्दों पर चर्चा हो रही है – वह भारतीय लोकतंत्र को समझने एवं आमजन की आंखों को खोलने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। संक्षिप्त में देखें तो वर्तमान दिल्ली सरकार अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोंख से पैदा होकर दिल्ली में सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री सहित कई दिग्गज मंञी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके और जमानत पर रिहा होकर जनता से मतदान की अपील कर रहे हैं। इनके उपर शीशमहल जैसे सम्पूर्ण सुविधा युक्त आलीशान बंगला का भी आरोप लगाया जा रहा है।

वहीं आज केन्द्र सहित कई राज्यों में शासन कर रही भाजपा सरकार पर राजमहल के साथ साथ भाजपा शासित पड़ोसी राज्य द्वारा यमुना के पानी में जहर (अमोनिया) धोलकर दिल्ली के मतदाताओं में दहशत पैदा कर वर्तमान “आप सरकार ” के विरुद्ध मतदाताओं को भड़काने का एक गम्भीर आरोप लगाया गया है। जिसकी जांच चुनाव आयोग कर रहा है । अब सवाल यह उठता है कि – भारतीय लोकतंत्र में चुनाव जितने के लिए राजनीतिक दलों ने जिन मुद्दों का सहारा लिया है – यह जनहित से जुड़े मुद्दे हैं या स्वहित से जुड़े मुद्दे ? कुछ समर्थक यह बोल सकते हैं कि -“”युद्ध और प्रेम में सब जायज़ होता है।”” यह पश्चिमी विद्वानों का विचार हो सकता है। लेकिन भारत के किसी सदग्रंथ या रिषियों -मुनियों -विद्वानों के विचार नहीं हो सकते। रहा चुनावी मुद्दों की बात तो आम जन को यह आसानी से समझ में आने लगा है कि भारतीय राजनीतिक दल येन-केन प्रकारेण चुनाव में विजय हासिल करके उन सुविधाओं का भरपूर इस्तेमाल करना चाहते हैं जो जनता ने अपने खुन पसीने से कमाई सम्पत्ति पर “कर” (Tax,Tax,Tax) से कराह रही है।

वर्तमान केन्द्रीय सरकार ने आम बजट में मध्यम वर्गीय जनों को कुछ राहत देते हुए प्रभावित करने का प्रयास जरूर किया है। लेकिन मुफ्तखोरी का जहर घोलने में सभी राजनीतिक दल एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में लगे हैं। एक समय ऐसा भी आ सकता है जब बिना परिश्रम किए सबकुछ प्राप्त होता रहेगा तो देश की एक बड़ी आबादी अपंग अपाहिज हो जायेगी। वास्तव में जो मुफ्त में मिलना चाहिए (शिक्षा – स्वास्थ्य) उसकी बात कोई करना नहीं चाहता। सभी दल जाति-धर्म जैसे मुद्दों में ही आमजनों को उलक्षाये रखना चाहता है। जाति व्यवस्था का विरोध करने वाले लोग भी राजनीतिक स्वरूप में जाति को पुष्पित पल्लवित करने में लगे हैं। हमें कैसा समाज चाहिए ? कैसी सरकार चाहिए? कैसे राजनेता चाहिए? जैसे ज्वलंत मुद्दों पर हमें एकमत होना ही होगा!!

प्रोफेसर (डॉ) अखिलेश्वर शुक्ला, पूर्व प्राचार्य विभागाध्यक्ष- राजनीति विज्ञान; राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर।

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