जौनपुर ( शाहगंज ) क्षेत्र के बड़ागांव स्थित ऐतिहासिक ईदगाह में सोमवार को प्रातः 6:30 बजे ईद उल अजहा की नमाज मुफ्ती अजीजुल हसन द्वारा अदा की गई। वहीं दूसरी तरफ चहार रौज़ा स्थित जमा मस्जिद में सुबह 8:30 बजे मौलाना आज़मी अब्बास द्वारा ईद अल-अजहा की नमाज को संपन्न किया गया। नमाज के दौरान कोतवाली पुलिस द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बकरीद की कुछ विशेषताएं
मुस्लिम समुदाय का बकरीद या ईद-उल-अजहा प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस बार बकरीद 17 जून 2024 को मनाई जा रही है। इस दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा है। इस पर्व को ईद-उल-अजहा या बकरा ईद के नाम से भी जानते हैं।
यह पर्व रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आता है।.बकरीद का महत्व- इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, कहते हैं कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी। कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था।
कहा जाता है कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे। उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया था। तभी से बकरा ईद अल्लाह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है। त्योहार में प्रार्थना, दावत और परिवार और दोस्तों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान शामिल है। पैगंबर इब्राहिम के बलिदान की याद में मुसलमान परंपरागत रूप से एक जानवर की बलि देते हैं, आमतौर पर बकरी, भेड़, भैंस या ऊंट। मांस को तीन भागों में बांटा जाता है: एक परिवार के लिए, एक रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और एक जरूरतमंदों लोगों के लिए। यह पर्व उदारता और एकता का प्रतीक है।
पर्व के आते ही बाजारों में रौनक बढ़ने लगी नन्हे मुन्ने बच्चों में भी त्यौहार का उत्साह देखने को मिला सोमवार को प्रातः से ही लोग अपने बच्चों के साथ ईदगाह की तरफ जाते देखे गए। ईद अल-अजहा की नमाज के दौरान पुलिस की कड़ी सुरक्षा में उप निरीक्षक आनंद प्रजापति, उपेंद्र पाल, अनंत यादव, ओमकार पासवान, अभिषेक सिंह, समेत उन पुलिसकर्मी मुस्तादी से तैनात रहे।