Kalanpur village becomes a global confluence of faith during Muharram in jaunpur
- अमेरिका-कनाडा जैसे देशों से वतन लौटते है प्रवासी
JAUNPUR NEWS IN HINDI (खेतासराय ) मोहर्रम में खेतासराय के कलांपुर गाँव बना आस्था का वैश्विक संगम उत्तर-प्रदेश के जनपद जौनपुर के खेतासराय थाना क्षेत्र का एक छोटा सा गाँव कलांपुर मोहर्रम के अवसर पर हर साल एक धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक पुनर्मिलन और साम्प्रदायिक सौहार्द का जीवंत उदाहरण बन जाता है। इस गाँव की मिट्टी से जुड़ी परंपराएँ इतनी गहराई से दिलों में बसी हैं कि अमेरिका, कनाडा, दुबई, क़तर, और सऊदी अरब जैसे दूर देशों में बसे प्रवासी भी मोहर्रम के दिन गाँव लौटने को अपनी ज़िम्मेदारी और सौभाग्य मानते हैं।
विदेश से गाँव लौटने का जुनून
गाँव के अधिकांश लोग रोज़गार, शिक्षा या व्यवसाय के लिए वर्षों पहले विदेशों में बस गए हैं। लेकिन जैसे ही इस्लामी नववर्ष का आगाज़ होता है और मोहर्रम की ताज़ियों की तैयारी शुरू होती है, वैसे ही कलांपुर JAUNPUR की यादें और परंपरा उन्हें खींच लाती हैं।
कनाडा रह रहे फ़ज़ल इमाम कहते हैं, मोहर्रम आते ही मन बेचैन हो जाता है। दुनिया में कहीं भी रहें, लेकिन दिल की धड़कनें कलांपुर की गलियों से जुड़ी रहती हैं। इमामबाड़ा, शबीहों के जुलूस, मजलिसें और मातम आत्मा तक को छू जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रसिद्ध इमामबाड़े की देख-रेख और रख-रखाव को वे अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं।
इस बार अमेरिका से नहीं लौट सके प्रवासी
प्रत्येक वर्ष अमेरिका से हुसैन नसीर गाँव आते थे, लेकिन इस बार युद्ध जैसे हालात और बच्चों की पढ़ाई और टिकट न मिलने के कारण वे यात्रा नहीं कर सके। वहीं दुबई से शमशीर हैदर मेहंदी, जीशान हैदर, बाकर मेहंदी अपने बच्चों और परिवार के साथ गाँव पहुँचे हैं। कनाडा से फ़ज़ल इमाम की मौजूदगी ने भी कलांपुरवासियों को भावुक कर दिया।
गाँव के जौहर अब्बास बताते हैं, जब यहाँ के लोग विदेशों में बसने लगे, तो लगा था परंपरा कमजोर पड़ जाएगी। लेकिन हर साल उनका लौटना और श्रद्धा से भाग लेना यह सिद्ध करता है कि परंपराएँ ज़िंदा हैं और आगे भी रहेंगी।
कलांपुर में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल
कलांपुर की एक और अनूठी पहचान यह है कि यहाँ मोहर्रम सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय तक सीमित नहीं है। गाँव के हिंदू निवासी भी ताज़ियों के निर्माण, सजावट और व्यवस्था में पूरी श्रद्धा से भाग लेते हैं। यह सहयोग गाँव को सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना देता है।
गाँव का प्रसिद्ध इमामबाड़ा मोहर्रम के अवसर पर पारंपरिक सजावट और रंग-बिरंगी रोशनियों से जगमगा उठता है। यहाँ की ताज़ियों की कारीगरी, अलम, सोज़ख़्वानी (शोक गीत), नौहे और मजलिसें न केवल गाँव में बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध हैं।
मोहर्रम बना परंपरा, परिवार और पहचान का पर्व
मोहर्रम के ये दस दिन केवल शोक और धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि गाँव लौटने, परिवार से जुड़ने और अपनी जड़ों को महसूस करने का एक भावनात्मक अवसर बन चुके हैं। कलांपुर के निवासी, चाहे कहीं भी हों, इन दिनों गाँव में एकत्र होकर यह साबित करते हैं कि संस्कृति और परंपरा किसी सीमा, देश या समय की मोहताज नहीं होती।
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