पत्रकारिता का बदलता स्वरूप लोकतांत्रिक देश में प्रेस की आजादी को बुनियादी अधिकारों में सर्वोच्च स्थान दिया गया है क्योंकि किसी भी जमहूरी शासन में जनता अथवा देश के मतदाताओं को ही अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता है। प्रतिनिधि और देश या प्रदेश की विधायी संस्थाएँ क्या कर रही हैं इसकी सूचना देने का काम प्रेस का ही होता है। इसी प्रकार जनता की क्या प्राथमिक आवश्यकताएँ है अथवा क्या असुविधाएं हैं इसे भी शासन व सत्ता तक पहुँचाने का काम प्रेस ही करता है वह चाहे प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। दोनों की कोशिश यही रहती है कि ये लोक सेवक जनता के प्रति ईमानदार रहें।
आम लोगों को उस वक्त प्रेस की याद आती है जब वे लोग चतुर्दिक परेशानियों से घिरे होते हैं और कही कोई सहारा नहीं सूझता। यद्यपि प्रेस के पास कोई ऐसी शक्ति नहीं है जिससे वह किसी को राहत दे सके किन्तु प्रेस सम्बन्धित व्यक्ति या संस्था के दर्द को अपने समाचार-पत्र या इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिये लोगों और शासन-प्रशासन तक पहुँचा कर तंत्र को आवश्यक समाधान देने के लिए मजबूर कर सकता है और यही प्रेस का उत्तरदायित्व भी है कि वह जनसमस्याओं का यथातथ्य प्रकटीकरण कर उसे शासन तंत्र तक पहुँचावे और संवेदनशील शासन का दायित्व है कि वह समस्याओं का संज्ञान लेकर उसके समाधान हेतु कार्यवाही कराये।
इधर कुछ दिनों से प्रेस की ताकत कम होती दीख रही है। देश और प्रदेशों की सरकारें और उनके लोग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबते जा रहे हैं। जब भ्रष्टाचार की शिकायतें न्यायपालिका में पहुँचती है तब सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग ऐसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को हटाते हैं अन्यथा तब तक दल/सरकार के जिम्मेदार लोगों द्वारा भ्रष्ट लोगों के बचाव में ही मुहिम चलाते देखा जाता रहा है। यदि ये लोग प्रेस का विश्वास करते और खबरों पर कार्रवाई करते तो इस
चतुर्थ स्तम्भ की गरिमा बढ़ती और सरकार शासन की संवेदनशीलता की प्रशंसा होती। वस्तुतः यह विडम्बना ही है कि आजादी के 7 दशक बीतने के भी सरकार जनता को इतना सुशिक्षित और समझदार नहीं बना सकी हैं कि वह अपना, समाज का और देश का भला-बुरा समझ सके तथा अपने मूल्यवान मत को सार्थक बनाकर ऐसे जनप्रतिनिधि का चुनाव करें जो चोरी-बेईमानी और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा न हो। आम लोगों को हमारी सरकार के लोग और हमारे प्रेस-माध्यम इतनी योग्यता और दक्षता नहीं दे पाये हैं कि वह मतदान करते समय जाति- बिरादरी, मजहब-धर्म, भाई-भतीजा पैसा आदि का ध्यान न रखकर एक अच्छे, कुशल, ईमानदार और देश व समाज के लिए समर्पित प्रतिनिधि का चुनाव करे जो निजी बैंक बैलेन्स बढ़ाने और विकास निधि लूटने के अलावा जनहित को प्राथमिकता दे।
आज चतुर्दिक चोरी, बेईमानी, भ्रष्टाचार का बोलबाला होने के नाते जनता त्राहि-त्राहि कर रही है फिर भी मतदान करते वक्त हम सब कुछ भूल जाते है। गुण्डों, मवालियों, अपराधियों, जमाखोरों, जाति और मजहब के ठेकेदारों के झूठे वायदों में भूलकर उन्हें मतदान कर देते हैं और ये जनप्रतिनिधि सबसे पहले जनता की विकास के लिए प्रदत्त निधि का स्वयं के विकास में इस्तेमाल करते हैं। गन्दगी एक ही वर्ग में नही है यह चतुर्दिक व्याप्त है। गाँव व शहर के नागरिक इनके द्वारा कराये जा रहे घटिया निर्माण या अन्य कार्यों का विरोध भी नहीं करते। अपनी पत्रकार बिरादरी भी लोभवश उनके हिसाब और कार्यों का ब्यौरा नहीं मांगती। पत्रकार यह भी पूछने का साहस नहीं करते कि आप विधायक, सांसद या मंत्री बनते ही कैसे धन्ना सेठ बन गये ?
पत्रकारिता विषय का अध्ययन और व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने वाली इस नई पौध से यह आशा और अपेक्षा है कि पत्रकारों की यह पीढ़ी अपने दायित्व को समझेगी और देश की बदहाली को कम करने की दिशा में कुछ सार्थक प्रयास करेगी। यदि यह पीढ़ी काफी कुछ करने में न समर्थ हो सकी तो, हमारा कौन जनप्रतिनिधि क्या कर रहा है? जनता की गाढ़ी कमाई का कितना सदुपयोग या दुरूपयोग कर रहा है, यह जनता को अवश्य बतायेगी। यह प्रयास यदि सार्थक हुआ तो हमारे जन नेता ईमानदार बनने के लिए मजबूर हो जायेंगे। यही इस पाठ्यक्रम के संचालन और पत्रिका के प्रकाशन की सार्थकता होगी।
प्रधान संपादक
श्याम नारायण पांडेय: