back to top

Raja Ram Mohan Roy ने बड़े अधिकारी की नौकरी छोड़ दी थी,पत्रकारिता के लिए

RAJA RAM MOHAN ROY आम जनता में स्वाधीनता के प्रति जागृति लाने वाले तथा अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन को जनता तक पहुंचाने के लिए राजा राममोहन राय ने पत्रकारिता को अपना माध्यम बनाया था ।
पत्रकारिता में भाषा के महत्व को देखते हुए आपने हिंदी अंग्रेजी संस्कृत उर्दू फारसी अरबी बंगाल आदि भाषाओं का ज्ञान ही नही प्राप्त किया बल्कि अधिकार प्राप्त किया आप ईस्ट इंडिया कंपनी में अधिकारी थे उसे नौकरी को त्याग पत्र देकर अपने सामाजिक जागृति और स्वतंत्र चेतना समाज को जगाने के लिए कठोर परिश्रम किया l

राजा राममोहन राय ने हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों और विकृतियों को मिटाने के लिए समाज के लोगों को अखबारों के माध्यम से समझाया कुछ नेता जैसे लोग उनका विरोध करने लगे लेकिन राजा राममोहन राय ने उन्हें भविष्य में होने वाली परेशानी के बारे में बताया और कहा कि इससे समाज बिखर जाएगा तो लोग धीरे-धीरे सहमत हुए और सांगठनिक रूप से आजादी के लिए तेजी से प्रयास होने लगा हिंदू जनों में जातीय विदेश और छुआछूत उस समय स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर होने की जड़ थी लोगों में समझने के लिए अपने अखबारों को माध्यम बनाया ।


बंगाल गजट:

अपने विचारों को केंद्र में रखकर कलकत्ते से सन 1816 ईस्वी में राजा राममोहन राय ने बांग्ला साप्ताहिक बंगाल गजट का प्रकाशन गंगाधर भट्टाचार्य की संपादक तत्व में कराया किसी भारतीय भाषा का  प्रकाशित यह देश का पहला समाचार पत्र था राजा राममोहन राय ने सामाजिक जागृति को सामने रखकर कोलकाता से बंगाल गजट के अलावा भी भिन्न-भिन्न भाषाओं में अनेक अखबारों का प्रकाशन करवाया। उनमें  तीन अखबार मुख्य थे।
 1. दि इंक्वारी

 2. दि रिफॉर्मर

 3. दि ज्ञान अन्वेषण

एशियाटिक जर्नल – राजनैतिक और सामाजिक जन जागरण की शुरुआत राजा राममोहन राय ने सन 1819 में प्रकाशित एशियटिक  जनरल से किया। अपना पहला लेख  सती प्रथा जैसे सामाजिक कलंक के विरुद्ध उन्होंने जमकर लेखन कार्य किया जिसमें समाज के ही स्त्री पुरुष महिलाओं को विधवा होने के बाद जबरदस्ती आग  के हवाले कर देते रहे इस पाप कर्म के बारे में आपने  तेज आंदोलन  छेड़ा और कानून बनवाने में मदद किया।

ब्रहमैनिकल मैगजीन (द्विभाषी)  

राजा राममोहन राय ने पत्रिका ‘ब्रहमैनिकल’ मैगजीन का प्रकाशन इसलिए किया कि  समय कोलकाता से प्रकाशित एक अखबार समाचार दर्पण में हिंदुत्व की दुर्भावना ग्रस्त एवं गलत प्रथाओं के विरुद्ध राजा राममोहन राय ने एक लेख भेजा जिसमें आपने सिद्ध किया था कि इन गलत प्रथाओं और परंपराओं से हिंदू धर्म की समाज  में प्रतिष्ठा गिर रही है किंतु समाचार दर्पण ने इसे प्रकाशित करने  से मना कर दिया तब राजा साहब ने स्वयं के संपादक में ” मैगजीन का प्रकाशन शुरू किया जिसमें उन सभी अखबारों को जवाब दिया जिम हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया जाता रहा।


संवाद कौमुदी :

RAJA RAM MOHAN ROY राजा राममोहन राय की प्रेरणा से ही द्विभाषीय संवाद कौमुदी का 4 दिसंबर 1821 से कोलकाता से प्रकाशित हुई इसके संपादक श्री ताराचंद दत्त एवं भवानी चरण वंदे उपाध्याय थे आपकी वैचारिक लेख इस पत्र में प्रकाशित होते रहे किंतु कुछ ही कारणों से राजा साहब कुछ समय बाद इससे अलग हो गए।

 समाचार चंद्रिका :

राजा साहब ने दिनांक 5 मार्च 1822 से समाचार चंद्रिका नामक अखबार का संपादन और प्रकाशन शुरू किया जो पत्रकारिता क्षेत्र में क्रांतिकारी अखबार के रूप में प्रसिद्ध हुआ जब कोलकाता न्यायालय के एक अंग्रेज जज द्वारा एक भारतीय को जिसका नाम प्रताप नारायण दास था कोड़े  लगाने की सजा दी गई जिससे उसकी मौत हो गई  तब राजा राममोहन राय उसकी मौत से बहुत दुखी हो गए और इस बर्बरता के खिलाफ एक बहुत मार्मिक लेख लिखा और न्यायिक क्षेत्र में आपने  कई मुद्दे उठाए जो निम्नलिखित है।

1. जूरी प्रथा आरंभ की जाए।
2.न्यायाधीश एवं दंडाधिकारी का पद अलग किया जाए।
 3. न्यायालय की कार्यवाही आम जनता के लिए खुली हो।
4.उच्च पदों पर भारत वासियों की अधिक से अधिक संख्या में नियुक्त की जाए।
5.  पंचायतें कायम की जाय  6 भारतीय जनमानस पर जम आधारित कानून का निर्माण हो।

प्रति मंगलवार को प्रकाशित होने वाले इस अखबार का विषय फलक काफी विस्तृत था  जिसमें सामाजिक आर्थिक नैतिक राजनीतिक धार्मिक आदि  विषय थे उसे समय भारतीय समाज की पहचान  -शिक्षा ,अज्ञान ,अंधविश्वास बीमारी ,भुखमरी कूपमंडूकता  कुसंस्कार  आदि से की जाती थी ।ईस्ट इंडिया कंपनी के मनमानी आचरण से भारतीयों का  मनोबल स्पष्ट था राजा राममोहन राय ने इसके प्रति अपने पत्रों में जोर-सोर से विरोध किया।


संवाद कौमुदी यह अखबार राजा राममोहन राय का बारूद के समान विस्फोटक और देश में हलचल मचाने की खबरों के लिए प्रसिद्ध था और काफी दिनों तक प्रकाशित भी होता रहा इसी पत्र के समाचारों से परेशान होकर तत्कालीन गवर्नर जनरल जान एडम ने 14 मार्च 1823 को प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए कड़ा कानून बनाया। मीरात उल अख़बार राजा राममोहन राय ने दिनांक 29 अप्रैल 1822 को कोलकाता से ही फारसी भाषा का अखबार मीरात  उल अखबार प्रकाशित किया ।इस समाचार पत्र के प्रकाशित होने से पहले फारसी भाषा में भारत से कोई अखबार नहीं प्रकाशित हो रहा था। यह पत्र हर शुक्रवार को प्रकाशित होता था इस पत्र का मूल्यांकन करते हुए तत्कालीन अखबार कोलकाता जनरल ने लिखा है भाषाई अखबारों में मिरातुल अखबार सारिका कोई अखबार उसे समय कोलकाता में नहीं रहा है ।


बंगदूत RAJA RAM MOHAN ROY ने 1829 ई को कोलकाता से ही बांग्ला भाषा में बंगदूत नाम का अखबार प्रकाशित किया इसमें बांग्ला हिंदी और फारसी भाषा के शब्दों का अधिकांश प्रयोग किया जाता रहा इस पत्र का कोलकाता के प्रबुद्ध जनों में काफी स्वागत हुआ यद्यपि इसका प्रकाशन बहुत समय तक नहीं हो पाया लेकिन बौद्धिक क्षेत्र में यह अखबार बहुत ही आदरणीय और सराहनीय रहा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments