समानता और सामाजिक सुधार के अग्रदूत थे संत रविदास
भारत के महान संत, समाज सुधारक और कवि संत रविदास की जयंती हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। संत रविदास न केवल एक धार्मिक गुरु थे, बल्कि उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत और असमानता के विरुद्ध आवाज उठाई। उनका जीवन और विचारधारा आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें मानवता, समानता और प्रेम का संदेश देती हैं। उन्होंने कहा कि “ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।” आज उनका सपना देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पूरा कर रहे हैं। अन्न के बाद जिस दिन समरसता का सपना पूरा हो जाएगा उस दिन संत रविदास की आत्मा प्रसन्न होगी।
संत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी के एक निम्न जाति के परिवार में हुआ था। उनके पिता संतोख दास जूते बनाने का कार्य करते थे, जिसे उन्होंने भी अपनाया। समाज में फैली ऊँच-नीच की भावना के बावजूद संत रविदास ने अपने कर्म, भक्ति और विचारों से समाज को जागरूक करने का प्रयास किया। उनके विचारों का प्रभाव इतना गहरा था कि उच्च कुल के राजा-महाराजा और विद्वान भी उनके अनुयायी बन गए।
संत रविदास का विवाह लोणा देवी से हुआ था, लेकिन उनका मन हमेशा आध्यात्मिक साधना और समाज सेवा में ही रमा रहता था। उन्होंने गुरु रामानंद से आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की और भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। संत रविदास का जीवन मानवता के प्रति प्रेम, दया और समानता का प्रतीक था।समाज सुधार में संत रविदास का योगदान
- जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन
संत रविदास ने समाज में व्याप्त जातिवाद और छुआछूत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि व्यक्ति की पहचान उसके कर्म और गुणों से होती है, न कि उसकी जाति से। उन्होंने निम्न वर्ग को आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया। उनके विचारों का प्रभाव इस कदर बढ़ा कि उनके शिष्य बने राजा-महाराजाओं ने भी जातिगत भेदभाव को नकार दिया। - समानता और भाईचारे का संदेश
संत रविदास ने “जात-पात के फंदों” को तोड़ने का संदेश दिया। उन्होंने समाज को एकता और प्रेम का पाठ पढ़ाया। उनके अनुसार, ईश्वर के लिए सभी समान हैं, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो। उन्होंने कहा—
“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।”
इसका अर्थ है कि संत रविदास एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जहाँ कोई भी भूखा न रहे, और सभी लोग समान रूप से जीवनयापन करें।
- आध्यात्मिकता और भक्ति आंदोलन
संत रविदास ने भक्ति आंदोलन को मजबूत किया और निर्गुण भक्ति मार्ग का प्रचार किया। उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए आत्मा की शुद्धता और प्रेम को ही सच्ची भक्ति बताया। उनके भजनों और दोहों में भक्ति की अद्भुत झलक मिलती है। उनका मानना था कि केवल पूजा-पाठ करने से मोक्ष नहीं मिलेगा, बल्कि सच्चे मन से परमात्मा की आराधना करनी चाहिए। - गुरु-शिष्य परंपरा
संत रविदास के शिष्यों में मीरा बाई जैसी महान भक्त भी थीं। मीरा बाई ने उन्हें अपना गुरु मानकर भक्ति मार्ग पर चलने का निर्णय लिया। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर उन्होंने कई भजन लिखे। इस तरह संत रविदास ने आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी समाज को नई दिशा दी।
संत रविदास की रचनाएँ और साहित्यिक योगदान
संत रविदास न केवल एक समाज सुधारक थे बल्कि वे एक महान कवि भी थे। उनके भजन और दोहे आज भी प्रासंगिक हैं और गुरुग्रंथ साहिब में भी उनकी रचनाएँ संग्रहीत हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं— - रविदास जी के पद – ये भक्ति रस से ओत-प्रोत रचनाएँ हैं, जो जीवन के सत्य और ईश्वर प्रेम को दर्शाती हैं।
- गुरुग्रंथ साहिब में संग्रहीत रचनाएँ – सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ में संत रविदास के 41 पद संकलित हैं, जो उनकी महानता को दर्शाते हैं।
- मन चंगा तो कठौती में गंगा – यह प्रसिद्ध दोहा उनकी सोच को स्पष्ट करता है कि यदि मन शुद्ध है तो बाहरी आडंबर की आवश्यकता नहीं।
संत रविदास का आदर्श समाज और आज की प्रासंगिकता
संत रविदास ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहाँ कोई ऊँच-नीच न हो, सभी को समान अवसर मिलें, और हर व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो। आज के समय में भी उनके विचार उतने ही प्रासंगिक हैं। जातिवाद, आर्थिक असमानता और सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए हमें उनके बताए मार्ग पर चलना चाहिए।
सरकार और समाज द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन जब तक हर व्यक्ति खुद जागरूक नहीं होगा, तब तक संत रविदास के सपनों का समाज नहीं बन पाएगा। उनके विचार हमें मानवता और समानता की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
संत रविदास केवल एक संत नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जीवनभर समानता, भाईचारे और प्रेम का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं। संत रविदास जयंती के अवसर पर हमें उनके विचारों को आत्मसात कर, एक ऐसे समाज की ओर बढ़ना चाहिए, जहाँ हर व्यक्ति समानता और प्रेम के साथ जी सके।
उनके इन अमर वचनों को हम कभी नहीं भूल सकते—
कह रविदास खलास चमारा, जो हम सहरी सु मित्र हमारा।”
अर्थात, संत रविदास यह संदेश देते हैं कि व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है, जाति से नहीं। यही उनकी सबसे बड़ी शिक्षा है, जो समाज को सही दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती है। - डॉ. सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर, जनसंचार और पत्रकारिता विभाग
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर