Hartalika Teej नारी तप आस्था और सांस्कृतिक चेतना का पर्व

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Hartalika Teej नारी तप आस्था और सांस्कृतिक चेतना का पर्व
Hartalika Teej नारी तप आस्था और सांस्कृतिक चेतना का पर्व

Hartalika Teej Festival of Women’s Penance, Faith and Cultural Consciousness

Hartalika Teej : हरितालिका तीज भारत की धार्मिक परंपराएँ अपनी विविधता और गहनता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। यहाँ हर पर्व का कोई न कोई धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व होता है। इन्हीं में से एक विशेष पर्व है हरितालिका तीज, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा पड़ोसी देश नेपाल में बड़े श्रद्धा-भाव और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला यह पर्व केवल उपवास और पूजा का दिन नहीं है, बल्कि यह नारी-शक्ति, आस्था और आत्मबल का अद्वितीय प्रतीक है।

हरितालिका तीज का संबंध शिव-पार्वती विवाह की कथा से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। किंतु उनके पिता हिमवान ने उनका विवाह भगवान विष्णु के साथ कराने का निश्चय कर लिया। जब पार्वती जी की सहेलियों को इसका ज्ञान हुआ, तब उन्होंने पार्वती जी का हरण (हरित) कर उन्हें वन में ले जाकर भगवान शिव की आराधना करने के लिए प्रेरित किया।

वहाँ पार्वती जी ने कठोर व्रत और उपवास कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनके तप और भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसी प्रसंग के कारण इस व्रत का नाम हरितालिका तीज पड़ा हरित अर्थात् हरण और आलिका अर्थात् सखियाँ। यह कथा केवल एक धार्मिक आख्यान ही नहीं है, बल्कि इसमें स्त्री के संकल्प, धैर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति का जीवंत उदाहरण मिलता है।

हरितालिका तीज का व्रत अत्यंत कठोर माना जाता है। यह निर्जला उपवास होता है, जिसमें जल तक का सेवन नहीं किया जाता। व्रत करने वाली महिलाएँ पूरे दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं और रात्रि में जागरण रखकर भजन-कीर्तन करती हैं।

इस व्रत को मुख्यतः विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन की मंगलकामना के लिए करती हैं। वहीं, अविवाहित कन्याएँ अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। यह पर्व शिव-पार्वती के पावन दांपत्य का स्मरण कराता है और गृहस्थ जीवन में समर्पण, प्रेम और विश्वास के महत्व को रेखांकित करता है।

हरितालिका तीज के दिन पूजा की विधि विशेष महत्व रखती है। सामान्यतः इसकी प्रक्रिया प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं, घर अथवा मंदिर में मिट्टी या धातु की भगवान शिव, माता पार्वती तथा गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है, बेलपत्र, धतूरा, फल-फूल, पुष्प, धूप-दीप और नैवेद्य से पूजन किया जाता है, व्रत कथा का श्रवण अथवा पाठ अनिवार्य माना गया है, महिलाएँ दिनभर निर्जला उपवास करती हैं और रात्रि में सामूहिक भजन-कीर्तन व जागरण करती हैं, अगले दिन प्रातः पूजन कर व्रत का विधिवत पारण किया जाता है।

हरितालिका तीज का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम भी गहरे हैं। इस दिन महिलाएँ पारंपरिक परिधान धारण करती हैं। विशेषकर लाल, हरे और पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं, जो सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक हैं। विवाहित महिलाएँ अपने हाथों में मेंहदी रचाती हैं, श्रृंगार करती हैं और एक-दूसरे को तीज की शुभकामनाएँ देती हैं।

ग्रामीण अंचलों में इस अवसर पर लोकगीत और नृत्य का आयोजन होता है, जिनमें स्त्रियाँ अपने मनोभावों और उत्साह को अभिव्यक्त करती हैं। यह पर्व नारी एकजुटता और बहनापा का भी प्रतीक है, क्योंकि महिलाएँ सामूहिक रूप से उपवास और पूजा करती हैं।

हरितालिका तीज का पर्व केवल पति की लंबी आयु की प्रार्थना भर नहीं है। इसमें एक गहन संदेश छिपा हुआ है, नारी अपनी आस्था और संकल्प से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। पार्वती जी की भाँति, जिसने अपने दृढ़ निश्चय और तप से स्वयं भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया, वैसे ही आधुनिक समय की स्त्रियाँ भी अपने आत्मबल और दृढ़ संकल्प से समाज में अपनी पहचान बना सकती हैं। इस प्रकार, हरितालिका तीज को नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक पर्व भी कहा जा सकता है। यह स्त्रियों को आत्मविश्वास, आत्मबल और अपनी परंपराओं के प्रति गर्व का बोध कराता है।

आज के व्यस्त और तकनीकी जीवन में जब पारिवारिक बंधन शिथिल पड़ते जा रहे हैं, हरितालिका तीज जैसे पर्व हमें परिवार और रिश्तों की अहमियत याद दिलाते हैं। यह त्योहार पति-पत्नी के बीच विश्वास और निष्ठा को मजबूत करता है। साथ ही, सामूहिक रूप से तीज मनाना समाज में आपसी भाईचारा, सहयोग और सांस्कृतिक एकता को प्रोत्साहित करता है। त्योहार चाहे धार्मिक हो या सामाजिक, उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने कर्तव्यों और मूल्यों की ओर सजग करना होता है।

हरितालिका तीज केवल एक व्रत या धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह नारी के संकल्प, आस्था और आत्मबल का पर्व है। इसमें शिव-पार्वती विवाह की पौराणिक कथा के साथ-साथ नारी के धैर्य, दृढ़ता और भक्ति का अद्भुत संगम दिखाई देता है। यह पर्व परिवार की सुख-समृद्धि, दांपत्य की मजबूती और स्त्री की आंतरिक शक्ति का प्रतीक है। सांस्कृतिक दृष्टि से यह पर्व लोकगीत, श्रृंगार, उल्लास और सामूहिकता का उत्सव है। आधुनिक समय में भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है, क्योंकि यह हमें परंपरा से जोड़ने के साथ-साथ जीवन में प्रेम, समर्पण और विश्वास की महत्ता का बोध कराता है। इस प्रकार, हरितालिका तीज भारतीय संस्कृति की उस अमर परंपरा का प्रतीक है, जिसमें आस्था, अध्यात्म और सामाजिक चेतना का गहन समन्वय दिखाई देता है।

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