महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा और मीडिया की भूमिका
महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा आज के समाज का एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है। यह समस्या न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। शारीरिक,मानसिक,यौन, भावनात्मक, और साइबर उत्पीड़न जैसी हिंसाओं का सामना महिलाओं को हर दिन करना पड़ता है। महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की सुरक्षा के लिए भले ही कई कानून और नीतियां बनाई गई हों, लेकिन इस समस्या का समाधान आज भी दूर की कौड़ी लगता है। इस संदर्भ में, मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। मीडिया समाज का दर्पण माना जाता है, जो हमें रोजमर्रा की घटनाओं से अवगत कराता है और सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाता है। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा के मुद्दे पर मीडिया की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वह इस विषय पर जागरूकता फैलाने, पीड़िताओं को न्याय दिलाने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में अहम योगदान दे सकता है।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोई नई समस्या नहीं है, बल्कि यह लंबे समय से समाज का हिस्सा रही है। घरेलू हिंसा से लेकर बलात्कार, यौन उत्पीड़न, एसिड अटैक, ऑनर किलिंग, दहेज हत्या, और अब साइबर अपराध जैसे नए रूपों में यह समस्या सामने आ रही है। जैसे घरेलू हिंसा महिलाओं के खिलाफ सबसे आम और छिपी हुई हिंसा का रूप है। यह हिंसा न केवल शारीरिक रूप में होती है, बल्कि मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न भी इसमें शामिल होता है। महिलाओं को पति, ससुराल वालों या कभी-कभी अपने ही परिवार के अन्य सदस्यों से हिंसा का सामना करना पड़ता है। भारत में घरेलू हिंसा कानून के बावजूद, महिलाएं अक्सर इसे रिपोर्ट करने से कतराती हैं, क्योंकि इसे समाज में परिवार की इज्जत से जोड़ा जाता है।
बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह हिंसा महिलाओं के आत्मसम्मान, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा आघात करती है। एक समाज के रूप में हमारी विफलता यह है कि हम पीड़िता पर ही सवाल उठाते हैं, उसके चरित्र को दोषी ठहराते हैं, जबकि अपराधी खुली हवा में घूमते हैं। तकनीकी प्रगति के साथ, साइबर स्पेस में भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के नए रूप सामने आए हैं। ऑनलाइन उत्पीड़न, ट्रोलिंग, साइबर बुलिंग, महिलाओं की आपत्तिजनक तस्वीरों या वीडियोज को बिना सहमति के पोस्ट करना, और उन्हें सोशल मीडिया पर धमकाना आम हो गया है। साइबर अपराध की शिकार महिलाएं अक्सर मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या तक के कगार पर पहुंच जाती हैं।
भारत में दहेज प्रथा और ऑनर किलिंग जैसी समस्याएं अब भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा के प्रमुख कारणों में से एक हैं। दहेज के कारण महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, और कई बार उन्हें जलाकर मार भी दिया जाता है। वहीं, ऑनर किलिंग समाज की खोखली मान्यताओं और पितृसत्ता के कारण होती है, जहां महिलाओं को अपनी पसंद से शादी करने की सजा दी जाती है। यदि हिंसा के कारण की बात करें को निम्नलिखित बातें उभर कर सामने आती है। उसमें सबसे प्रमुख पितृसत्तात्मक समाज है, हमारे समाज में पितृसत्तात्मक ढांचा आज भी मजबूत है। महिलाओं को पुरुषों के अधीन और उनकी संपत्ति के रूप में देखा जाता है। यही मानसिकता हिंसा का कारण बनती है। शिक्षा की कमी व शिक्षा का अभाव भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देता है। अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोग अक्सर महिलाओं को समान अधिकार देने के विचार को स्वीकार नहीं कर पाते। वही कानून का कमजोर कार्यान्वयन भले ही हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन कमजोर है। अपराधियों को सजा देने में देर होती है, जिससे न्याय प्रणाली पर सवाल उठते हैं और अपराधी बेखौफ हो जाते हैं। समाज में विकृत मानसिकता भी कई बार समाज की मानसिकता ही महिलाओं के प्रति हिंसा को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिए, महिलाओं के पहनावे, उनकी स्वतंत्रता और उनके निर्णयों को लेकर समाज में आलोचना की जाती है।
ऐसे में मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, का समाज पर गहरा प्रभाव होता है। यह न केवल घटनाओं की जानकारी देता है, बल्कि समाज को जागरूक करता है और सोचने का तरीका बदलता है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के संदर्भ में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसे- सूचना का प्रसार और जागरूकता के रूप में देखें तो मीडिया की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सूचना का प्रसार और जागरूकता फैलाने की है। जब मीडिया हिंसा की घटनाओं को प्रमुखता से रिपोर्ट करता है, तो यह समाज को उस घटना से अवगत कराता है। इसके साथ ही, मीडिया का काम लोगों को जागरूक करना भी है, ताकि वे महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को पहचान सकें और उसके खिलाफ आवाज उठा सकें। इसके साथ ही साथ पीड़िता की पहचान की सुरक्षा को ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। अक्सर यह देखा गया है कि मीडिया हिंसक घटनाओं को सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत करता है, जिससे पीड़िता की पहचान और गरिमा खतरे में पड़ जाती है। विशेष रूप से यौन हिंसा के मामलों में, मीडिया को पीड़िता की पहचान गोपनीय रखनी चाहिए और रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए तथा चरित्र हनन से बचाव करना चाहिए। वह किसी पीड़िता का चरित्र हनन न करे। महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रिपोर्टिंग करते समय, मीडिया को उनके चरित्र पर सवाल उठाने या उनकी व्यक्तिगत जिंदगी में झांकने से बचना चाहिए और सकारात्मक कहानियों का प्रसार करें। मीडिया को केवल हिंसा की घटनाओं को रिपोर्ट करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे महिलाओं की सकारात्मक कहानियों को भी प्रमुखता से दिखाना चाहिए। ऐसी कहानियां, जो महिलाओं के सशक्तिकरण, उनके संघर्ष और उनकी उपलब्धियों को उजागर करती हैं, समाज में एक सकारात्मक प्रभाव डालती हैं और महिलाओं के प्रति सम्मान को बढ़ावा देती हैं। वर्तमान समय मे सोशल मीडिया का युग चल रहा है और यह एक सशक्त माध्यम बन चुका है। यहां पर हिंसा के खिलाफ तेजी से अभियान चलाए जा सकते हैं और महिलाओं के समर्थन में आवाज उठाई जा सकती है। मीडिया को सोशल मीडिया का सकारात्मक तरीके से उपयोग करना चाहिए ताकि महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें और उनके खिलाफ हो रही हिंसा पर रोक लग सके इसके अलावा मीडिया को जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करनी चाहिए। इसे सनसनीखेज बनाने की बजाय, उसे तथ्यों पर आधारित और संतुलित रिपोर्टिंग करनी चाहिए। मीडिया को हिंसक घटनाओं की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि समाज में सही संदेश जा सके और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जागरूकता फैल सके।
अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि मीडिया और संवेदनशीलता की कमी के कारण मीडिया की आलोचना की जाती है। वह कई बार महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत करता है। जैसे कि- हिंसा की घटनाओं का गलत चित्रण प्रस्तुत करते है? कुछ मीडिया चैनल या प्रकाशन हिंसा की घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि वे पीड़िता को दोषी ठहराने या घटना को महज मनोरंजन के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। इससे समाज में हिंसा के प्रति संवेदनशीलता कम होती है और पीड़िताओं को न्याय मिलने में मुश्किल होती है। कई बार मीडिया बिना तथ्यों की पुष्टि किए फर्जी खबरें चलाता है, जिससे न केवल पीड़िता की छवि खराब होती है, बल्कि समाज में गलत धारणाएं भी बनती हैं। मीडिया को सटीक और तथ्यों पर आधारित रिपोर्टिंग करने की जरूरत है ताकि समाज में सही संदेश जा सके। अगर मीडिया हिंसक घटनाओं को केवल सनसनीखेज खबर के रूप में प्रस्तुत करता है, तो इससे समाज में यह धारणा बन सकती है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा कोई बड़ी बात नहीं है। इससे समाज में संवेदनशीलता की कमी हो सकती है।
हाल के वर्षों मीडिया ने कई सकारात्मक कदम भी उठाए हैं, जिससे महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दों को सही ढंग से उठाया गया है। उदाहरण के लिए निर्भया कांड (2012), दिल्ली में हुए इस जघन्य अपराध के बाद मीडिया ने इस घटना को प्रमुखता से उठाया और पूरे देश में इसके खिलाफ गुस्से की लहर दौड़ गई। मीडिया की रिपोर्टिंग ने सरकार को इस मुद्दे पर सख्त कानून बनाने के लिए मजबूर किया।
लेखक- अज़ीम सिद्दीक़ी (पत्रकार)
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