अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं के संघर्ष, उपलब्धियों और समाज में उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। महिला दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि यह लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति सदियों से बदलाव के विभिन्न दौर से गुजरी है। जहां प्राचीन काल में महिलाओं को शिक्षा और स्वतंत्रता प्राप्त थी, वहीं मध्यकाल में सामाजिक बंधनों ने उनकी प्रगति को अवरुद्ध कर दिया। आधुनिक भारत में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं।
भारत एक ऐसा देश है जहां नारी को देवी का स्वरूप माना जाता है, लेकिन दूसरी ओर महिलाओं को कई सामाजिक बंधनों और रूढ़ियों का भी सामना करना पड़ा है। इतिहास पर नज़र डालें तो वैदिक काल में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे। गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा जैसी विदुषियों ने उस समय भी अपनी विद्वत्ता से समाज को दिशा दिखाई। महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने, ग्रंथों का अध्ययन करने और समाज में निर्णय लेने का अधिकार था। लेकिन समय के साथ समाज में बदलाव आया और महिलाओं की स्वतंत्रता पर कई प्रकार की पाबंदियाँ लगाई जाने लगीं। मध्यकाल आते-आते पर्दा प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा और दहेज जैसी कुरीतियाँ समाज में घर कर गईं। इन प्रथाओं ने महिलाओं की स्वतंत्रता और सशक्तिकरण को सीमित कर दिया।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई समाज सुधारकों ने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया और इसके उन्मूलन के लिए आंदोलन चलाया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह को सामाजिक स्वीकृति दिलाने का प्रयास किया। ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए और पहला महिला विद्यालय खोला। इस दौरान महिलाओं ने भी अपनी स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली जैसी महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर यह सिद्ध किया कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान में महिलाओं को समान अधिकार प्रदान किए गए। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत महिलाओं और पुरुषों को समानता का अधिकार दिया गया। अनुच्छेद 15(3) महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान बनाने की अनुमति देता है। अनुच्छेद 39(d) में समान कार्य के लिए समान वेतन की बात की गई है। इसके अलावा, दहेज निषेध अधिनियम, घरेलू हिंसा अधिनियम, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विशाखा दिशानिर्देश और मातृत्व लाभ अधिनियम जैसे कई कानून बनाए गए ताकि महिलाओं को सुरक्षा और समान अवसर मिल सकें।
आधुनिक भारत में महिलाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। आज महिलाएं राजनीति, विज्ञान, खेल, कला, व्यवसाय और रक्षा जैसे क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रही हैं। राजनीति में इंदिरा गांधी, निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी, ममता बनर्जी और द्रौपदी मुर्मू जैसी महिलाओं ने नेतृत्व कर देश की बागडोर संभाली है। विज्ञान और अंतरिक्ष में कल्पना चावला, टेसी थॉमस और रितु करिधाल जैसी महिलाओं ने अपना योगदान दिया है। खेल जगत में पी. वी. सिंधु, साइना नेहवाल, मैरी कॉम, मिताली राज और साक्षी मलिक जैसी खिलाड़ी भारत को वैश्विक मंच पर गौरवान्वित कर रही हैं। उद्यमिता के क्षेत्र में किरण मजूमदार शॉ, फाल्गुनी नायर और वंदना लूथरा जैसी महिलाओं ने बड़े व्यापारिक साम्राज्य खड़े किए हैं।
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। महिला आरक्षण विधेयक के तहत संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत महिलाओं को 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाता है ताकि वे अपने बच्चे की देखभाल कर सकें। निर्भया फंड के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया जा रहा है। सुकन्या समृद्धि योजना के तहत लड़कियों की शिक्षा और भविष्य की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।
हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद भारतीय समाज में महिलाओं को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लैंगिक असमानता, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल पर भेदभाव और शिक्षा की कमी जैसी समस्याएँ आज भी बनी हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अधिक कठिन है, जहां लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है और उन्हें कम उम्र में विवाह के लिए बाध्य किया जाता है। कई महिलाओं को अब भी कार्यस्थल पर समान वेतन और प्रमोशन के अवसर नहीं मिलते हैं।
महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। यदि महिलाओं को समान अवसर दिए जाएँ, तो वे हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकती हैं। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। उन्हें कानूनी अधिकारों की जानकारी देकर आत्मरक्षा और सुरक्षा के लिए सक्षम बनाना भी जरूरी है। कार्यस्थल और समाज में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करना एक बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह समाज में महिलाओं की भूमिका को स्वीकार करने और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने का संकल्प लेने का अवसर है। महिला सशक्तिकरण केवल महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज और देश के विकास के लिए आवश्यक है। जब महिलाएँ सशक्त होंगी, तो समाज और देश भी प्रगति करेगा। यह समय है कि हम केवल महिलाओं के अधिकारों की बात न करें, बल्कि उन्हें हर क्षेत्र में समान अवसर प्रदान करें ताकि वे अपने सपनों को साकार कर सकें। महिलाओं का सशक्तिकरण ही समाज की वास्तविक प्रगति है और जब महिलाएँ आगे बढ़ेंगी, तो भारत भी नई ऊँचाइयों को छुएगा।
डॉ. अन्नू राजभर
तिलकधारी सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर