आनंद से आकाश और आकाश से आनंद छिन गया,बहुजन को एक करने वाले कांशीराम का मिशन मायावती ने किया फेल,भाजपा के सामने उप्र में बरगद की तरह खड़े रहते थे कांशीराम,अब हनक और तेवर में कभी नहीं दिखेंगी बहन मायावती,दलित भी भाजपा, कांग्रेस और सपा में अपनी जमीन तलाशने को मजबूर,जातिगत आधार पर वोट पड़ने की संभावना दिख रही है 2024 के लोस चुनाव में कभी कांशीराम ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस मेहनत से बहुजन समाज पार्टी की वह नीव डाल रहे है। उनकी उत्तराधिकारी जिनके प्रति उनका अटूट विश्वास था। उसी विश्वास की प्रतिमूर्ति मायावती उनके सींचे संगठन की नींव में मट्ठा डालने का काम करेंगी। जी हां, हम बात कर रहे हैं बसपा सुप्रीमो मायावती की। बसपा सुप्रीमो मायावती को अगर कहा जाए कि यह भारतीय जनता पार्टी की बी टीम है तो कोई गलत नहीं होगा। मायावती को सोचना होगा कि दलितों के समर्पण, विश्वास, मेहनत और खून से यह पार्टी बनी है। उन्हें वह दिन याद करना होगा कि बसपा की रैली में दलित, ओबीसी की इतनी भीड़ होती थी कि लाखों की संख्या में पहुंचने वाले कई दलितों का रैली अंतिम दिन होता था। कहने का मतलब वह रेलवे प्लेटफार्म और बस अड्डे पर भीड़ की धक्का-मुक्की का शिकार होकर अपना दम तोड़ देते थे। उस पार्टी की मुखिया मायावती आज इतनी सहमी क्यों हैं? उनकी पार्टी में भाजपा की दखल क्यों है? अमेठी के प्रत्याशी किशोरी लाला शर्मा ने तो यह कह दिया कि अमित शाह बीएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। आकाश आनंद के बीजेपी के खिलाफ एक बयान पर मायावती ने उन्हें सभी पदों से मुक्त कर दिया गया। अब हम इन रहस्यों की कुछ परत खोलने का प्रयास कर रहे हैं।
बहुजन को एक करने वाले कांशीराम का मिशन फेल मायावती जब से ईडी, इनकम टैक्स जैसी एजेसिंयों के रडार पर आई। उन्हें लगा कि अब जेल की चहारदीवारी से अच्छा है जब तक जिंदगी है भावी सरकारों से समझौता कर आराम और ऐश की जिंदगी व्यतीत की जाए। उनका पार्टी को आगे ले जाने और दलितों की लड़ाई लड़ने का कोई मकसद अब नहीं रहा। दलित आधार पर बनी पार्टी जब ब्राह्मण सम्मेलन करने लगे तो समझ जाइए उस पार्टी का कोई भविष्य अब नहीं रहा। बताते चले कि उप्र ने छः ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाएं। कांग्रेस ने अंतिम बार 1989 में नारायण दत्त तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद उप्र प्रदेश समेत हिंदी क्षेत्रों के प्रदेश से ब्राह्मण चेहरा गायब होने लगा। राजनीतिक दलों ने भी जनता की नब्ज को पकड़ लिया। मंडल कमीशन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ओबीसी और बहुजन दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने की होड़ लग गई। उप्र में अब तक 35 वर्षों में किसी भी दल ने मुख्यमंत्री के रूप में ब्राह्मण चेहरा को नहीं चुना। ब्राह्मण प्रेम के कारण कांग्रेस आज भी उप्र, हरियाणा और बिहार में उभर नहीं पा रही है। भाजपा ने भी यह गुस्ताखी नहीं की। ब्राह्मण नेता तो पैदा किया लेकिन मुख्यमंत्री किसी को नहीं बनाया।
अब हम बात करते हैं कांशीराम की। दलितों का मानना है कि रामलहर में भी मान्यवर कांशीराम भाजपा के सामने उप्र में बरगद की तरह खड़े रहे। उन्होंने कभी समझौता नहीं किया बल्कि लोग उनके पास समझौता करने आते थे। उन्होंने अपनी एक इमेज बिल्डिंग बनाई थी। इससे सभी राजनीतिक दल घबरा गए थे। कोई उनकी उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। कारण उनके पास दलितों को वोट बैंक जो था। इसको वह जिधर चाहे उधर मोड़ने की ताकत रखते थे। सरकार में आने पर उन्होंने इस ताकत को हमेशा बरकरार रखने के लिए संत रविदास और अंबेडकर के नाम पर कई जगह पार्क और मूर्तियां बनाई। यह भी उनकी एक सोच और विजन का हिस्सा था। वह जानते थे की हमारा समाज सोने वाला है। यह तभी जागेगा जब इन महापुरुषों की मूर्तियों पर कोई प्रहार करेगा। मगर मायावती अपने को जेल जाने से बचने के लिए पार्टी को कमजोर कर दी हैं। उन्होंने जबसे बसपा में सतीश मिश्रा को तरजीह देनी शुरू की तभी से उनका वोट बैंक खिसकना शुरू हो गया। खैर हम अब बात करते हैं तत्कालिक मुद्दे की।
मुद्दा है आकाश आनंद को सभी महत्वपूर्ण पदों से हटाना। आजकल राजनीतिक दलों के भीतर गहरी चर्चा का कारण यह बन गया है। यह निर्णय सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और इसके असर को समझने के लिए अन्यायपूर्ण, न्यायपूर्ण और राजनीतिक मानदंडों का विश्लेषण करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्या यह मायावती का भाजपा प्रेम नहीं है? इसके अतिरिक्त, यह निर्णय पार्टी के आंतरिक विवादों की गहरी दिशा को दर्शाता है, जो उसकी विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। अब मायावती को सोचना है कि उनकी कुछ गलतियों की वजह से वह भाजपा की गुलाम बनकर रह गई हैं। अगर उनके में समर्पण और त्याग की भावना होती तो वह भाजपा को दहाड़ती की मैं जेल जाऊंगी लेकिन अपने समाज को किसी दल के सामने गिरवी नहीं रख सकती। तब उनके प्रति समाज का विश्वास होता। उन्हें कल्पना सोरेन और सुनीता केजरीवाल से सीख लेने की जरूरत है। अगर इनसे सीख नहीं लेना है तो वह ममता बनर्जी से सीख लेनी चाहिए। ममता बनर्जी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को लांच किया। अभिषेक में पश्चिम बंगाल के लोग ममता का अश्क देखने लगे। मगर कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वह भाजपा के दबाव में तो हैं। यह बात सत-प्रतिशत सही है। वह यह भी नहीं चाहती कि भाजपा आकाश आनंद बहुजन को किसी बड़े केस में फंसाकर लगातार ब्लैकमेलिंग करती रहे। हो सकता है चार जून को भाजपा की सरकार केंद्र में नहीं आए, तब वह कांग्रेस गठबंधन के साथ मिलकर अपने केस को हल्का कराकर फिर से आकाश आनंद को ला सकती हैं। मुझे भी आकाश आनंद को हटाए जाने की यह घटना एक राजनीतिक सोच का हिस्सा लगती है।
यह तो अपने सोचने का एक नजरिया है। मगर मायावती को सोचना होगा की कांशीराम ने बीएसपी की बुनियाद मीडिया के बल पर नहीं कैडर के बल पर रखी थी। बहुजन को एक करने वाले कांशीराम कैडर घर-घर जाकर लोगों को एकजुट किया, लेकिन मीडिया उसे जातिवादी पार्टी की रूप में ही पेश किया। इसके बावजूद कांशीराम ने प्रदेश में चार बार मायावती को मुख्यमंत्री बनाया। मायावती में भी डिक्टेटरशिप है। वह किसी को दल में जब तक रहेंगी अपने से ऊपर नहीं देखना चाहती। अंग्रेजी में कहें तो वह वन वूमेन शो महिला हैं। उनका मानना है कि उनका साम्राज्य दलितों के वोट पर टिका है। इन्हें झुकाकर डराकर रखने पर ही एकजुट रहेंगे। अगर इन्हें ज्यादा महत्व दिया जाएगा तो संगठन में फूट पड़ जाएगी। कांशीराम ने अपने विजन के तहत आरएसएस की तर्ज पर बसपा को बैकिंग देने के लिए बामसेफ का गठन किया था। इस संगठन में सरकारी कर्मचारी थे। जो नौकरी करने वालों और बुद्धजीवियों के बीच प्रचार- प्रसार कर दलितों को एकजुट करते थे। पार्टी से कार्रवाई होने के बाद आकाश आनंद ने एक्स एकाऊंट पर लिखा, ‘आदरणीय मायावती जी, आप पूरे बहुजन समाज के लिए एक आदर्श हैं, करोड़ों देशवासी आपको पूजते हैं। आपके संघर्षों की वजह से ही आज हमारे समाज को एक ऐसी राजनैतिक ताकत मिली है जिसके बूते बहुजन समाज आज सम्मान से जीना सीख पाया है।’आकाश ने आगे लिखा, ‘आप हमारी सर्वमान्य नेता हैं। आपका आदेश सिर माथे पे। भीम मिशन और अपने समाज के लिए मैं अपनी अंतिम सांस तक लड़ता रहूंगा। जय भीम-जय भारत।’बता दें कि 7 मई को मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और अपने उत्तराधिकारी पद से हटाने का निर्णय लिया था। उन्होंने एक्स पर इसकी जानकारी दी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि आकाश के पिता आनंद कुमार पार्टी के लिए काम करते रहेंगे। आकाश को हटाने के का कारण आकाश ने करीब 2 दर्जन से ज्यादा रैलियों को संबोधित किया। सीतापुर के राजा कॉलेज में एक जनसभा में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में आकाश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी।यहां उन्होंने भाजपा सरकार को ‘आतंक की सरकार’ करार दिया था और जूतों से मारने की बात कही थी।इस विवाद के बाद से मायावती ने आकाश की रैलियों पर रोक लगा दी और बाद में उनको पद से हटाया। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि मायावती जांच एजेंसियों के रडार पर होने के बाद अब वह तेवर उनके में नहीं रह गया है। वह कायर हो गई है। इसी वजह से दलितों का झुकाव भाजपा और सपा की ओर हो रहा हैं। उन्हें भी तो अपनी जमीन तलाशनी होगी। इससे कुल मिलाजुलाकर दलित वोटों को इधर उधर जाने पर मायावती ने मजबूर कर दिया। इसका नुकसान दलितों को होगा ही। अब उनका वोट बैंक निर्णायक भूमिका में नहीं होगा। 2024 के लोकसभा में चुनाव में स्थिति यह हो गई है कि ओबीसी और दलित अपना वोट तय नहीं कर पा रहे हैं कि किधर दिया जाए। इससे एनडीए और इंडी एलायंस की स्थिति साफ नहीं है। ऐसे में इस चुनाव में यूपी की राजनीति जाति फैक्टर ज्यादा काम कर रहा है, इसलिए यूपी में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है।
डाक्टर सुनील कुमार -प्रोफेसर पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर