पहलगाम का शैतानी नरसंहार और उससे उत्पन्न गंभीर प्रश्न

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पहलगाम का शैतानी नरसंहार और उससे उत्पन्न गंभीर प्रश्न
पहलगाम का शैतानी नरसंहार और उससे उत्पन्न गंभीर प्रश्न

The diabolical Pahalgam massacre and the serious questions it raises

पहलगांव में शैतानों और नर पिशाचों को भी लज्जित कर देने वाली जघन्य हत्याकांड ने एक या दो दिन सनातन धर्म के लोगों को सरकार को आकर्षित किया फिर सब कुछ शांत हो गया नेता लोग भी बयान बाजी किये और लंबी चौड़ी हांक कर मिली मार और नूरा कुश्ती के तहत कुछ आतंकी ठिकानों पर बमबारी किया और प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया खरीदे गए बुद्धिजीवी लोगों और अपने चापलूसी चाटुकारों को मिलाकर इस तरह प्रदर्शित किया मानो उन्होंने विश्व विजेता का ताज पहन लिया और गिलगित बाल्टिस्तान मुजफ्फराबाद और आजाद कश्मीर को भारत में मिला लिया अब इन लोगों अर्थात अधिकांश प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया खरीदे गए सोशल मीडिया के गुलाम चापलूस और चाटुकार तथा आंख मूंदकर भाजपा और मोदी का गुणगान करने वाले लोगों को एक तरफ करते हुए मैं इसके मुख्य बिंदुओं को हमेशा की तरह पूरी निष्पक्षता और सच्चाई से फिर से रखूंगा तभी आपको इस घटना की भयानक स्थिति और शैतानी कांड का कुछ अनुभव हो सकेगा

सबसे पहली बात एक महीना बीत जाने के बाद भी तीन के तीनों नरपिशाच शैतान आतंकवादी छुट्टा घूम रहे हैं ना मारे गए ना पकडे गए ऐसे में कोई भयानक कांड फिर से कर सकते हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से सरकार उसके गुप्तचर तंत्र पुलिस प्रशासन पर अंगुली उठना स्वाभाविक है और इस तरह के कितने कांड होंगे यह बहुत ही संवेदनशील बिंदु है मौलाना साद आइस्ता परवीन गुड्डू मुस्लिम जैसे लोगों की तरह इन लोगों को जमीन का गई या आसमान निकल गया कुछ पता नहीं चला और ना चलेगा।

दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्न इतनी पर्यटकों से भरी हुई घाटी में जहां पैसों की बरसात होती है आखिर आज तक कोई सड़क क्यों नहीं बनी वहां पर कोई आपातकालीन चिकित्सा सेवा क्यों नहीं रखी गई और वहां एक पुलिस चौकी उन्नत किस्म के हथियारों से युक्त गैर मुसलमान वाली क्यों नहीं बनाई गई इसका उत्तर किसी के पास नहीं है और अगर ऐसा नहीं था तो आतंक से 1947 से दहल रही कश्मीर घाटी में पर्यटकों को जाने ही क्यों दिया गया जबकि वैष्णो माता और अमरनाथ यात्रा में उच्च कोटि के कमांडो और सेना पुलिस के बाद भी भयानक घटनाएं होती हैं और आतंकवादी हमले में हर साल बहुत से लोग मारे जाते हैं।

तीसरी बात जाने वाले लोग भी कम मूर्ख नहीं है इस घाटी से सुंदर और अच्छी से अच्छी एक से बढ़कर एक जगह हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड सिक्किम पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण भारत की पहाड़ियों में और माउंट आबू में विद्यमान है इसके बाद भी यह धर्मनिरपेक्ष लोग सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के चक्कर में पड़कर गए और अपनी जान गवा बैठे । जबकि वहां जाने के पहले 100 बार सोचना चाहिए जहां पर खुद सुना और सरकार ही सुरक्षित नहीं है वहां पर जाकर इन्होंने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती किया और अपनी जान गंवाई

शैतान आतंकवादी पूर्व की दिशा से घुसे जबकि चारों ओर चारदिवारी है तो फिर कैसे घुसे यह बहुत गंभीर प्रश्न है और 2 घंटे तक वह मारते रहे कोई भी सरकारी या अर्ध सरकारी पुलिस या प्रशासनिक मदद कितनी देर में क्यों नहीं पहुंच पाई और क्या भविष्य में लोग कश्मीर यात्रा का पूरी तरह से बहिष्कार करेंगे या इसी तरह अपने को बलिदान करते रहेंगे वैष्णो देवी अमरनाथ यात्रा सहित हर यात्रा को पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए अगर सरकार बंद ना करे तो किसी भी गैर मुसलमान पर्यटक को बिल्कुल नहीं जाना चाहिए जब वहां कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति सांसद विधायक मंत्री प्रधानमंत्री राष्ट्रपति जाते हैं तो कई स्तर की सुरक्षा के बाद ही जाते हैं पूरा भारत पर्यटकों के लिए खुला है फिर कश्मीर जाने की जिद क्यों करते हैं उन्हीं का पैसा आतंकवादियों के भजन हथियार और अशोक आराम में काम आता है

सरकार के इस नारे ने सबको भ्रमित कर दिया कि कश्मीर आतंकवाद से मुक्त हो गया है इस बात को संसद में अमित शाह और अन्य लोगों ने चिल्ला चिल्ला कर कहा था इससे जोश में भरकर लोग बैसारना घाटी गए और वापस नहीं आ पाए आतंकवादी अपने आधे उद्देश्य में ही सफल हुए उनका लक्ष्य महिलाओं और लड़कियों को लेकर अगवा करने का था लेकिन किसी अज्ञात वजह से ऐसा नहीं हो पाया वरना स्थिति और भी भयानक होती शायद संख्या में काम होने और साधन उपलब्ध न होने से उन्होंने ऐसा नहीं किया।

कुछ बड़े चुनिंदा प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया और सरकारी चमचे तथा खरीदे गए बुद्धिजीवी इसका अलग ढंग से बखान कर रहे हैं जो बिल्कुल अनुचित है और ऐसे बयानों का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए यह बहुत गंभीर बात है कि एक महीने में ही सरकार जनता सेवा पुलिस प्रशासन पूरी तरह से इस घटना को भूल गई या फिर जानबूझकर भुलाया गया क्योंकि सारे मीडिया के लोगों को इस पर चुप रखा गया और जो दिखाने लायक था वही दिखाया गया महत्वपूर्ण और संवेदनशील बिंदुओं पर सभी मौन रहे ।

एक बात बहुत ही दुखद और चौंकाने वाली है की किसके इशारे से एकमात्र मुस्लिम आदिल का इतना गुणगान किया जा रहा है कोई कह रहा है की बंदूक के छीनने में मर गया तो कोई कह रहा है पर्यटकों को बचाने में मर गया जबकि वास्तव में वह अपने घोड़े को लेकर भागने के चक्कर में मारा गया था और उसकी वेशभूषा भी हिंदुओं जैसी थी इसके अलावा कश्मीर के मुस्लिम महिलाओं का होटल का बड़ा संवेदनशील मुद्दा प्रस्तुत करके यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि आतंकवाद और मुसलमान अलग-अलग हैं जो की बहुत ही अनुचित है अगर आप वीडियो ध्यान से देखें तो जो महिलाएं होटल में डर के मारे गई थी उनसे होटल की मालकिन महिलाएं हंस कर बात कर रही थी जैसे पीड़ा का कोई अनुभव ही नहीं है ।

इसी तरह कुछ उन वीडियो को जानबूझकर बहुत अधिक प्रसारित किया गया जिसमें एक दो बच्चे लोगों को कंधे पर बैठ कर स्थानीय मुस्लिम ले जा रहे थे जबकि ऐसा कहीं कुछ नहीं था यह सब हत्याकांड के घंटे बाद शुरू किया गया जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे अन्यथा वहां सैकड़ो हजारों की संख्या में स्थानीय लोगों की मौजूदगी में तीन आतंकवादी कुछ नहीं कर पाए होते एक तीर से दो निशाने किए गए और दुर्भाग्य से सरकारी तंत्र इसी आदिल घोड़े वाले को कंधे पर बैठ कर जाने वाले मुसलमान को और होटल की महिलाओं को जो शांत होना दे रही हैं इस तरह प्रचार प्रसार किया मानो उन्होंने अपना बलिदान दे दिया है वही वीडियो सामने आए जो मुस्लिम पक्ष के लाभ से जुड़े थे बाकी वीडियो बनाए गए लेकिन उसे सरकार या मीडिया को नहीं उपलब्ध कराया गया बाकी आप खुद समझ लीजिए।

मैं इस बात पर भी पूरे स्पष्ट और निष्पक्ष रूप से कहूंगा कि ऑपरेशन सिंदूर जो किया गया वह बहुत ही अच्छा और प्रभावशाली था लेकिन इस तरह अचानक बिना किसी निर्णय के उसको रोक देना और उसको सही ठहराना और एक इंच जमीन भी नहीं पाना और बाद में अपने सांसद विधायकों को जनता के खर्चे पर विदेश में इसका प्रचार करना पूरी तरह सामान्य व्यक्ति के भी समस्या बाहर है क्या यही मोदी जी का आपदा में अवसर हैं जितने पैसे लग रहे हैं उतने पर पैसे अगर पीड़ितों में बांट दिए गए होते तो कहानी दूसरी होती ।

और यह सब हो जाने के बाद आज भी कश्मीर में हर जगह आतंकी हत्यारों द्वारा रोज आए दिन सेना के जवान और अधिकारी मारे जा रहे हैं आम जनता और पुलिस वाले इन आतंकवादियों के सामने कितना ठहर पाएगी ।यही हाल नक्सली लोगों का है उनके भी समाप्त होने की घोषणा जोर-शोर से कई बार की जा चुकी है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है आज भी देश के संसाधनों का जो सनातनी लोग खून पसीने से कमाते हैं उसका लाभ मुसलमानों को दिया जा रहा है और यह सब लिखने का साहस किसी में नहीं है क्योंकि हम और देश की जनता वही जान पा रही हैं जो सरकार उन्हें बताना चाहती है

कुल मिलाकर इस तरह का बार-बार और सामूहिक शैतानी ढंग से किया गया हत्याकांड इस तरह का है जैसे कि हमाज नहीं इजराइल में घुसकर किया था लेकिन इसराइल ने तो दिखा दिया कि शत्रु पर प्रहार करके उन्हें पूरी तरह नष्ट कैसे किया जाता है लेकिन क्या भारत ने ऐसा कुछ किया यह मैं आप लोगों के ऊपर छोड़ता हूं और यह कहते हुए अपने इस लेख को समाप्त करता हूं की असली सच क्या है वह कभी भी हमारे आपके दुनिया के सामने नहीं आ पाएगा l

डॉक्टर डॉ दिलीप कुमार सिंह

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