लोकतंत्र का एक नवीन दृष्टिकोण: एक राष्ट्र एक चुनाव
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation, One Election) का विचार भारत में चुनाव प्रक्रिया को अधिक सुगम, व्यवस्थित और लागत प्रभावी बनाने के लिए प्रस्तुत किया गया है। लोकतंत्र का आधार ‘चुनाव’ है, ऐसे में लोकतंत्र को सुदृढ़ और सशक्त बनाने की दिशा में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। लोकतंत्र के इस नवीन दृष्टिकोण का मुख्य उद्देश्य लोकसभा,राज्य विधानसभा, नगरीय निकायों और स्थानीय शासन का चुनाव एक साथ आयोजित कराना है।
सन 1951 से लेकर 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य के विधानसभा का चुनाव एक ही साथ आयोजित होता था। कुछ राज्यों में विधानसभा समय से पूर्व भंग हो जाने के कारण बाद में चुनाव कराया जाता था। ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को लागू करने का विचार सर्वप्रथम सन 1883 में निर्वाचन आयोग के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसने लागू करने के संबंध में भारत सरकार द्वारा 2 सितम्बर 2023 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई। इसका सरोकार लोकसभा व सभी राज्यों के विधानसभा के चुनाव को एक साथ करने के उचिता से संबंधित था।
इस समिति का कार्य एक राष्ट्र एक चुनाव के संभावित लाभ और उसके समक्ष आने वाले समस्याओं की जाँच-पड़ताल करना था। इस संबंध में रामनाथ कोविंद के अध्यक्षता में बनाई गई समिति की रिपोर्ट को 2024 में ही जारी कर दिया गया। इसकी सिफारिश को लागू करने के उद्देश्य 18 सितम्बर 2024 को केंद्रीय मन्त्रिमण्डल द्वारा स्वीकृति मिल गई। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने 129वां संशोधन विधेयक 2024 और उससे संबंधित संघ राज्य क्षेत्र विधि संशोधन विधेयक 2024 को सदन में प्रस्तुत करने के लिए रखा। प्रस्तुत विधायक का विपक्षी पार्टियों द्वारा जोरदार तरीके से विरोध किया गया। यदि हम एक साथ एक चुनाव से संबंधित लाभों की बात करें तो पहला लाभ होगा चुनाव आयोग पर बार-बार पड़ने वाले अनावश्यक वित्तीय बोझ में कमी हो सकती है और चुनावी खर्च के अनावश्यक व्यय को राष्ट्रीय कल्याण में लगाया जा सकता है।
दूसरा लाभ है कि चुनावी प्रक्रिया में भारी संख्या में सरकारी कर्मचारी और सुरक्षा बलो की तैनाती की जाती है जिससे अन्य महत्वपूर्ण कार्य में अवरोध उत्पन्न होता है। तीसरा लाभ है चुनावी माहौल के फलस्वरुप नीतिगत निर्णय, जिनको समय से लागू नहीं किया जा सकता। समय की बचत के पश्चात शासन अपना पूरा ध्यान विकास वह जनहित संबंधित आवश्यक कार्य पर लगा सकेगी। चौथा लाभ लोकतांत्रिक परिपक्वता से संबंधित है जिसके कारण बार-बार चुनाव होने से भारतीय समाज में क्षेत्रीय व राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर जनमानस में विचार की विभाजन बढ़ता है।
परंतु एक बात महत्वपूर्ण है कि भारत में संघात्मक शासन प्रणाली को अपनाया है और भारत में विविधतापूर्ण देश के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है। यदि एक साथ चुनाव संपन्न होता है तो अलग-अलग राज्यों की सामाजिक व राजनीतिक पहलुओं से संबंधित छोटे-छोटे मुद्दे बड़े मुद्दों के नीचे ही दम तोड़ देंगे, जिसका नुकसान क्षेत्रीय पार्टियों को हो सकता है। भारत का संविधान राज्यों की स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण स्थान देता है इसे लागू करने के लिए सरकार को कठिन मार्ग से गुजरना पड़ेगा। आसामियाक विघटन की स्थिति में एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार मैं बाधा उत्पन्न हो सकती है। किंतु फिर भी एक राष्ट्र एक विचार लोकतंत्र के लिए एक नवीन दृष्टिकोण साबित होगा।
“एक राष्ट्र एक चुनाव” एक सराहनीय विचार है, लेकिन इसे लागू करने से पहले देश की संवैधानिक, प्रशासनिक और राजनीतिक संरचना को गहनता से समझना होगा। यह आवश्यक है कि सभी पक्षों के विचारों को ध्यान में रखते हुए एक सर्वसम्मत दृष्टिकोण अपनाया जाए। भारत जैसे विविधतापूर्ण और लोकतांत्रिक देश में यह सुनिश्चित करना होगा कि यह पहल न केवल व्यावहारिक हो, बल्कि सभी राज्यों और नागरिकों के हितों की रक्षा भी करें। एक राष्ट्र एक चुनाव एक प्रभावशाली विचार है, जो संसाधन बचाने और प्रशासन को अधिक प्रभावी बनाने में मदद कर सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन, राजनीतिक सहमति और व्यापक तैयारी की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संघीय ढांचे पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
लेखक- सुरेश कुमार व अन्नू (रिसर्च स्कॉलर)
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर, यूपी।