जब ठान लिया तो ठान लिया

संस्मरण-

“जब ठान लिया तो ठान लिया”
—एक स्वर्णिम उपलब्धि का संस्मरण

जब ठान लिया है, तो अब पीछे मुड़कर देखने का कोई अर्थ नहीं। या तो संकल्प न किया होता, या फिर मंज़िल पाने का उद्देश्य ही छोड़ दिया होता। जब हमने ठान लिया कि कुछ बनना है, तो केवल आईएएस ही बनना है। पिताजी, जो स्वयं एक साधारण कर्मचारी थे, लेकिन उनकी सोच अत्यंत ऊँची थी, उन्होंने कभी हमें पीसीएस का फॉर्म भरने के लिए नहीं कहा। मैं पढ़ाई-लिखाई में सामान्य था लेकिन जीवन में ऊंचा लक्ष्य रखने के लिए हमेशा प्रेरित किया ।

उक्त विचार जौनपुर के पूर्व व गौतम बुद्ध नगर के वर्तमान डीएम मनीष कुमार वर्मा से सुनकर मेरे थके, निराश और हतोत्साहित मन में आशा की एक नई किरण फूटी। उस समय मेरे भीतर जो निराशा घर कर चुकी थी, वह आशा में बदलने लगी। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के ‘इन्वेस्टर समिट’ के समापन समारोह में डीएम मनीष कुमार वर्मा के ओजस्वी शब्द मेरे अंतर्मन को झकझोर गए। मैं तृतीय सेमेस्टर का टॉपर था, लेकिन फाइनल सेमेस्टर की की परीक्षा में सफलता की अनिश्चितता और प्रतिस्पर्धा के दबाव में जूझ रहा था। यह विचार मन में बार-बार आता था कि यदि किसी कारणवश चूक गया, तो न केवल गोल्ड मेडल से, बल्कि राज्यपाल के हाथों उस सुनहरे क्षण से भी वंचित हो जाऊंगा।

डीएम साहब के शब्दों ने जैसे मेरे अंदर संजीवनी का संचार कर दिया। उनकी बातें, “जब ठान लिया तो ठान लिया,” मेरे हृदय में गहराई से घर कर गईं। जैसे ही समारोह समाप्त हुआ, मैंने उनसे मिलने का अवसर पाया। उन्होंने स्नेहपूर्वक मेरे कंधे पर हाथ रखा और मेरी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा। उनके शब्दों ने मुझे और अधिक प्रेरित किया, “आप फाइनल सेमेस्टर भी टॉप करेंगे और गोल्ड मेडल भी हासिल करेंगे।”

उस दिन के बाद से मेरे मन में संकल्प और दृढ़ हो गया कि अब मुझे विश्वविद्यालय का गोल्ड मेडल प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। मैंने उन सभी चीज़ों का त्याग किया जो मेरी सफलता के मार्ग में बाधा बन रही थीं। जीवन की तमाम समस्याएँ—चाहे वह आर्थिक हों या वैवाहिक—सब पर काबू पाकर मैं अपनी पढ़ाई में जुट गया। मेरे और गोल्ड मेडल के बीच केवल 17 अंकों का अंतर था, लेकिन डीएम की प्रेरणा से मैंने हर चुनौती को पार किया।

अंततः 9 नवंबर 2023 का वह ऐतिहासिक दिन आया जब मैं मंच पर राज्यपाल से गोल्ड मेडल प्राप्त कर रहा था। मेरी आँखों में प्रसन्नता के आँसू थे, और मन में डीएम मनीष वर्मा की बातें गूंज रही थीं। मुझे उन तक अपनी सफलता की खबर पहुँचानी थी। गौतम बुद्ध नगर स्थानांतरित होने के बावजूद, उन्होंने मेरी सफलता को निजी रूप से सराहा।

फोन करके बधाई देते हुए डीएम ने मेरे प्रयासों की सराहना की और मुझे अपने साथ दिल्ली आने का निमंत्रण दिया, तो वह क्षण मेरे जीवन का सबसे अनमोल पल बन गया। उनका स्नेह, समर्थन, और प्रेरणा मेरी सफलता के पीछे का मुख्य कारण थे। उनसे मिलने का अवसर पाकर, मुझे यह एहसास हुआ कि वह सिर्फ एक जिलाधिकारी नहीं, बल्कि मेरे जीवन के प्रेरणा स्रोत थे।

लेखक: रामनरेश प्रजापति, गोल्ड मेडलिस्ट, जनसंचार एवं पत्रकारिता, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर