एकात्म मानववाद को अपने व्यवहार एवं कार्य में करें शामिल- प्रो. मनोज मिश्र 

एकात्म मानववाद को अपने व्यवहार एवं कार्य में करें शामिल- प्रो. मनोज मिश्र 

जौनपुर.  वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वावधान में पंडित दीनदयाल उपाध्याय  के जन्मदिवस पर प्रबंध अध्ययन संकाय भवन के कांफ्रेंस हॉल में पंडित दीनदयाल उपाध्याय  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषयक  विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मनोज मिश्र ने कहा कि दीनदयाल जी ने स्वतंत्र भारत के लिए भारतीय वैदिक संस्कृति के मूल तत्व सर्वे भवन्तु सुखिनः वसुधैव कुटुंबकम ,तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा की संस्कृति से अनुप्राणित एकात्म मानववाद का दर्शन प्रस्तुत किया। पंडित जी मानते थे कि पूरा ब्रह्मांड एक तत्व से जुड़ा है। व्यक्ति परिवार से, परिवार समाज से ,समाज देश से, देश दुनिया से दुनिया ब्रह्मांड से जुड़ी  है।

सब परस्पर निर्भर है,इसलिए एकात्म मानव दर्शन पर आधारित समाज में हम सभी  एक दूसरे को बिनानुकसान पहुंचाये रचनात्मक कार्य में संलग्न रहते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि  एकात्म मानववाद दर्शन को समझ कर अपने व्यवहार एवं कार्य में शामिल करें। कार्यक्रम के बीज वक्ता  प्रो. अविनाश डी. पाथर्डीकर   ने कहा कि पंडित जी का दर्शन खंडित ना होकर समष्टिवादी था और मानव जीवन पद्धति पर उनकी सोच समग्रता की थी।पंडित जी का मानना था कि मानव जीवन में उत्पादन,वितरण एवं उपभोग ये तीन क्रियाएं उसके आर्थिक जीवन को रूपायित करती हैं। अनियंत्रित और असामयिक उपभोग वितरण में विषमता और लूट को प्रेरित करता है।उत्पादन की मर्यादा नहीं रहती।अर्थ संस्कृति का सूत्र है उपरिमात्रिक उत्पादन, सामान वितरण और संयमित उपभोग, उत्पादन, उपभोग व वितरण का सामाजिक व सांस्कृतिक पहलू भी होता है सामाजिक व सांस्कृतिक पहलू की उपेक्षा करने वाला उत्पादन,उपभोग व वितरण मानव को विषमता, लोलुपता, शोषण एवं संवेदनशीलता से ग्रस्त करेगा।


अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रोफेसर अजय द्विवेदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों पर चलकर ही भारत विश्व गुरु बन सकता है आज के उपभोक्तावादी संस्कृति में पंडित जी के अंत्योदय की अवधारणा निश्चित तौर पर मानवता की वह मिसाल  है जो भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम के एकदम करीब है। इसके पूर्व शोध पीठ के अध्यक्ष प्रोफेसर मानस पांडेय ने आए हुए अतिथियों एवं मुख्य वक्ता का स्वागत किया तथा विषय परिवर्तन करते हुए पंडित दीनदयाल जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। गोष्ठी के पूर्व संकाय  भवन में स्थापित पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया. कार्यक्रम में प्रो गिरधर मिश्र, प्रोफेसर देवराज सिंह,डॉ दिग्विजय सिंह राठौर, डॉ. श्याम कन्हैया सिंह, डॉ. जाह्नवी श्रीवास्तव, डॉ० नितेश जायसवाल, डॉ.सूरज सोनकर,डॉ आलोक गुप्ता, डॉ. ऋषिकेश,डॉ. सुशील कुमार,डॉ. वनिता सिंह,डॉ. राजन त्रिपाठी, श्री राकेश उपाध्याय, डॉ. रोहित पांडेय, डॉ. सुशील कुमार सिंह, डॉ. निशा पांडेय एवं छात्र-छात्राएं आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।

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